Monday, 19 August 2019

साईकिल - भाग 2 - रेल यात्रा

. . . . . . . . . . . उन्हे अलार्म की घंटी भी अपने गृहनगर की उस गली से आती हुई आवाज़ सी लग रही थी जिसमे कि नगर के बच्चे वायलिन सीखने जाया करते थे |  बिंदु जी ने खिड़की खोल दी, सुबह की ताज़ी हवा की खुशबू भी आज रमेश बाबू को बचपन की अपनी पसंदीदा बेकरी की याद दिला रही थी |
जिसपे वे अपने सभी मित्रों के साथ जाया करते थे | बीते दिनों की यादें उन्हें मंत्रमुग्ध कर रही थीं | तभी टेलीफोन की घंटी बजी | रमेश बाबू के  ऑफिस से था | वे उठे तैयार हुए और निकल पड़े | हालांकि वह छुट्टी वाला दिन था , परन्तु कुछ आव्यशक काम आ पड़ा | चिट्ठी अब भी उनके ऑफिस बैग में ही थी | शाम को वे जल्दी वापिस आ गए और बिंदु जी को बोले कि उनका बैग तैयार करवा दें , वे घर जाने वाले हैं | बिंदु जी ने रमेश बाबू के  मुँह से ऐसा सुना और उनका खुद का मुँह  खुला का खुला रह गया |  उनका और रमेश बाबू का प्रेम विवाह था | दोनों के ही घर वाले आधुनिक सोच वाले थे |  वे चूँकि रमेश बाबू को शादी के काफी पहले से भी जानती थीं , पर उन्होंने  इतने सालों में कभी भी रमेश बाबू के मुँह से घर जाने की बात नहीं सुनी और आज अचानक से ऐसा सुनकर स्तब्ध रह
गयीं | खैर , रमेश बाबू तैयार हुए, बिंदु जी ने उनका बैग पकड़ाया और वे रेलवे स्टेशन निकल पड़े |  ट्रेन में अगर आपको कुछ सोचना हो या पुरानी बातें  याद करनी हो तो आप खिड़की की सीट पे बैठ सकते हो या फिर दरवाज़े के पास खड़े होकर सफर के कुछ पल काट सकते हो  | रमेश बाबू को सीट वाला विचार शायद ठीक लगा हो , वे वहीँ बैठ गए और सर खिड़की पे टिका दिया, बिल्कुल बच्चे की तरह | उन्हे  बचपन की  काफी बातें याद आ रहीं थी आज | जैसे कि जब वो खेलने निकलते थे तो कभी - कभी सिर्फ उनका एक दोस्त ही था जो आता था | ये वही दोस्त है जिसने कि आज उन्हे चिट्ठी लिखी ,
उनका जिगरी यार , जो कि उन्हें भाई के बराबर था | वो जिगरी यार  जिस्से कि उन्हे  बात किये आज  तकरीबन तेरह साल हो आये थे | यह भी तब था जब रमेश बाबू के पिता का देहांत हुआ था और उनके मित्र  विनय बहुत संकोचते हुए उनकी तरफ कदम बढ़ाते हुए आये और उनसे पुछा , " रमेश ! तू  ठीक तो है न ? " . . . . . . . . . . . . . .( शेष अगले भाग में )

Monday, 5 August 2019

साईकिल - भाग 1 - चिठ्ठी

साईकिल से उतरके डाकिये ने दरवाज़े कि कुण्डी बजायी ही थी कि एक छोटा बच्चा दरवाज़ा खोलते ही बोल पड़ा, "यह किसके लिए है ?". "आपके घर में कोई बड़ा है क्या ?", डाकिये के इस सवाल का जवाब न देने के बजाय बच्चे ने उल्टा सवाल किया, "क्या यह मेरा है ?"|
"हाँ भई छोटे बाबू आपका ही है पर क्या कोई है घर में बड़ा जिसे मैं  दूँ तो वो आपको पढ़ के सुना दे ?"
"मुझे ही दे दो न, पिताजी कहते हैं कि मैं भी अब बड़ा हो गया हूँ | "

बच्चे कि इस हठ के आगे डाकिये ने घुटने टेक दिये और कहा कि ," ठीक है, पर यह अपने पिताजी को ज़रूर दे देना " | उस चिट्ठी पर आगे कलम से लिखा  हुआ था कि यह काफ़ी महत्वपूर्ण है कि वह चिट्ठी उसपे दिए पते पर पहुँच जाये | डाकिये ने चिट्ठी बच्चे के हाथ में पकड़ाई और जैसे ही जाने को हुआ तो बच्चा बोल पड़ा," क्या मेरे दस्तख़त नहीं लोगे ?"| डाकिये ने मुस्करा के बच्चे के सिर पे प्यार से हाथ फेरा और चला गया | नन्हे हर्ष ने वह चिट्ठी अंदर जाके मेहमान कक्ष में रख दी और खेलने में व्यस्त हो गया | शाम हो चुकि थी, जैसे ही बच्चे कि माँ घर में आरती घुमाते हुए मेज़ के पास पहुंची , उनकी नज़र एक लिफाफे पे पड़ी जो की वही लिफाफा था | उतने में रमेश बाबू की आवाज़ सुनाई पड़ी ," अजी बिंदु , हर्ष कहाँ हो दोनों ?" | हर्ष दौड़ के गोद में चढ़ गया और तुरन्त रमेश बाबू की कमीज़ कि जेब में हाथ डाल दिया और टॉफी निकाल ली | रमेश बाबू हँस पड़े | बिंदु जी ने उन्हे चाय दी और फिर दिन भर कि मोहल्ले कि बातें बताने में मशगूल हो गयीं |


रात हुई और सब सो गए | अगले दिन फिर वही रोज़मर्रा कि व्यस्तता में दिन बीता और वैसे ही शाम हुई | सब सो गए थे | रात को हर्ष अचानक से जग गया | शायद कोई बुरा सपना देखा था | उसे सुला कर रमेश बाबू किचन को पानी पीने गए और टहलते हुए मेहमान कक्ष में जाके बैठ गए | उन्होंने अपनी पसंदीदा पत्रिका उठायी ही थी, तभी उनकी नज़र एक लिफाफे पे गयी | यह वही लिफाफा था | उन्होंने उस पर भेजने वाले का नाम पढ़ा तो ऐसा लगा जैसे कि चेहरे पर ख़ुशी और उलझन कि भावनाओं का संगम हुआ हो | यह चिठ्ठी उनके बचपन के दोस्त विनय ने भेजी थी | पैंतीस साल हो गए थे एक दुसरे की शकल देखे या बात किये | यादों का सागर जैसे उमड़ कर के न जाने कितनी ही लहरें उनके आँखों के किनारे पे ला रहा हो | आँखें भरने को हो गयीं | उन्होंने चिठ्ठी वापस

लिफाफे में रखी और कमरे में जा कर बिस्तर पर लेट गए | हाथ माथे पे रखा और दुसरे हाथ से चिठ्ठी पकडे हुए माथे पे हाथ रख कर सोचने लग गए | इतनी गहरी सोच में डूबे रहे की पता ही नहीं चला कब भोर हो गयी और 
अलार्म बजने लगा | वे फिर भी वैसे ही मुद्रा में लेटे रहे | बिंदु जी ने अलार्म बंद किया और रमेश बाबू की तरफ देखा कि वे जगे हुए हैं परन्तु सोच में डूबे हुए..........                                                   
  ( शेष अगले भाग में )

Lone Wolf

Just when you think you are closing on me, I'll vanish because I am free. Just when you think you're gonna catch me, I will switc...