Wednesday, 24 April 2019

.....मंज़िल | |

कभी किया था साथ चलने का वादा ,
कभी पूरा कभी आधा | |

वक़्त के साथ लोग क्या मंज़र भी बदलते हैं |
कहीं मंज़िल न बदल जाये किसी के साथ कि चाह में,
 बस इसी बात से हम डरते हैं | |

चाहत लोगों से ज़्यादा वक़्त के साथ है हमें ,
ये भी बस वक़्त के साथ ही हो गयी | |

मंज़िल पर पहुँच के उसका लुत्फ़ उठाते हैं हम ,
आखिर यहाँ तक आने में मेहनत जो हुई | |

कुछ सीखी कुछ ना सीखी बातों का कारवाँ लिए बढ़ते चलते हैं |
आखिर कितना सीखें , दिल में कुछ बच्चों वाले ख़्वाब भी मचलते हैं | |

फिर  भी  उन्हें पूरा करने की ज़िद  दिल में है पड़ी |
क्यूंकि ये सिर्फ़ ज़िद नहीं , ये मंज़िल है मेरी | | 

6 comments:

  1. Baarish ke mausam mein chai pakode aur tumhare hindi kavitaaye aur kahaniyan. Bas aur kya chahiye? Bahaut Badiya Jai, Bahaut Badiya.

    ReplyDelete
  2. Sir this is your student Shivam. Really nice poem.

    ReplyDelete

Lone Wolf

Just when you think you are closing on me, I'll vanish because I am free. Just when you think you're gonna catch me, I will switc...