कभी किया था साथ चलने का वादा ,कभी पूरा कभी आधा | |
वक़्त के साथ लोग क्या मंज़र भी बदलते हैं |
कहीं मंज़िल न बदल जाये किसी के साथ कि चाह में,
बस इसी बात से हम डरते हैं | |
चाहत लोगों से ज़्यादा वक़्त के साथ है हमें ,
ये भी बस वक़्त के साथ ही हो गयी | |
मंज़िल पर पहुँच के उसका लुत्फ़ उठाते हैं हम ,
आखिर यहाँ तक आने में मेहनत जो हुई | |
कुछ सीखी कुछ ना सीखी बातों का कारवाँ लिए बढ़ते चलते हैं |
आखिर कितना सीखें , दिल में कुछ बच्चों वाले ख़्वाब भी मचलते हैं | |
फिर भी उन्हें पूरा करने की ज़िद दिल में है पड़ी |
क्यूंकि ये सिर्फ़ ज़िद नहीं , ये मंज़िल है मेरी | |
Baarish ke mausam mein chai pakode aur tumhare hindi kavitaaye aur kahaniyan. Bas aur kya chahiye? Bahaut Badiya Jai, Bahaut Badiya.
ReplyDeleteShukriya Shukriya :-)
DeleteVery nic .....
ReplyDeleteThanks
DeleteSir this is your student Shivam. Really nice poem.
ReplyDeleteThank You bache ! :-)
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